कंधे पर सैर करने वाले
मेरे बच्चे!
मेरी हथेलियों पर उड़ने को बेताब
मेरे श्याम कबूतर!
कैसी गर्वीली अकड़ से
तू गरदन घुमाता था,
मुझे अपनी नज़रों से
दुनिया दिखाता था।
जितनी बार पलक झपकाई तूने
आकाश का समंदर का
इंसान का बंदर का
रोचक और भौंचक
इतिहास बना।
उठा ले गए तुझे आतताई
कहां-कहां से उमेठते होंगे
निरदयी पापी!
हाय री मेरे आपाधापी!
नज़रों से ओझल कैसे होने दिया
मैंने तुझे?
कोमल आज्ञाकारी अवगाहा,
अंधेरे में भी खींच लाता था
मेरा मनचाहा।
दिल खिंचा आता है
तेरी याद में,
पता नहीं क्या-क्या हुआ
तेरे साथ बाद में!
याद तो घनेरी,
तुझे भी सताएगी मेरी!
पर रोते हुए हृदय से
यही दुआ है,
खुश रहना
जहां भी रहो
मेरे प्यारे कैमरे!
तुम बिछुड़े बुरा हुआ है!