देश की कन्या : सहारे की हथेली
(कुछ सवाल और कुछ मलाल हैं नारी के पास)
कहे परिवेश— मैं धन्या,
कहे यह देश— मैं धन्या,
कलेजा क्लेश से कंपित,
ये मैं हूं देश की कन्या!
अश्रुजल से हुई खारी,
कहा जाता मुझे नारी!
परा तक पीर की पर्वत,
कहा जाता मुझे औरत!
यहां हूं देश की कन्या!
वहां हूं देश की कन्या!
बहन, पत्नी, जननि, जन्या,
इसी परिवेश की कन्या!
मैं सोनल हूं, मैं सलमा हूं,
सुरैया हूं, मैं सरला हूं,
मैं जमुना हूं, मैं जौली हूं,
मैं रज़िया हूं, मैं मौली हूं
मैं चंदो हूं, मैं लाजो हूं,
सुनीला हूं, प्रकाशो हूं,
मैं कुंती हूं, मैं बानो हूं,
मैं हुस्ना हूं, मैं ज्ञानो हूं,
मैं राधा, रामप्यारी हूं,
वतन की आम नारी हूं।
दुखों की क़ैद में लेकिन,
रहूंगी और कितने दिन?
न हूं मैं बंदिनी सुन लो,
न हूं अवलंबिनी सुन लो!
सृजन की शक्ति है मुझमें,
अतुल अनुरक्ति है मुझमें!
मैं बौद्धिक हूं, विलक्षण हूं,
त्वरा तत्पर प्रतिक्षण हूं!
मैं प्रतिभा हूं, मैं क्षमता हूं,
मैं जननी हूं, मैं ममता हूं!
सहारे की हथेली हूं,
कहा तुमने पहेली हूं!!