दानसिंह दूधिया, भैंस और साइकिल
(हरियाणवी तर्कशास्त्र बड़ा सटीक होता है)
दानसिंह दूधिया
पीठ पर ढोता था
दूध का ड्रम,
उसको एक दिन
सलाह दे बैठे हम—
भाई दानसिंह दूधिए।
आप एक साइकिल ख़रीदिए।
अजीब था
दानसिंह का उत्तर—
साइकिल!!!
साइकिल क्यों खरीदूं पुत्तर?
इसतै एक
भैंस ना खरीदूं,
ग्राहकां नै
जादा दूध-घी दूं।
हमने कहा—
आपका जवाब चुस्त है,
और कहना भी दुरुस्त है।
लेकिन क्या भैंस
अपनी पीठ पर
दूध का पीपा
धरने देगी?
—ठीक है
ठीक है
भाया ठीक है,
बात तेरी सटीक है!
ना धरण देग्गी।
ना धरण देग्गी।
ना धरण देग्गी।
पर मैं ये बूज्झूं सूं
अक….
साइकिल क्या
सुबह-सुबह
दूध दुहण देग्गी?