चुल्लू वाला हमें उल्लू बनाता है
(क्या दोषी है हमारी परीक्षा-प्रणाली, नंबर देने वाली)
एक नटखट छात्र ने
अध्यापक श्रीमानजी को
एसएमएस भेजा—
सर, फ्राई हो गया है भेजा।
समन्दर जितना सिलेबस है
नदी जितना पढ़ पाते हैं,
बाल्टी जितना याद होता है
गिलास भर लिख पाते हैं।
चुल्लू भर नम्बर आते हैं,
उसी में डूब के मर जाते हैं।
अध्यापक श्रीमानजी ने लिखा—
मुझे तो तुम जैसा कोई
चुल्लू में डूबता नहीं दिखा।
चुल्लू में डूबने के मुहावरे का
मजाक बनाते हो,
गिलास भर नम्बर के लिए
हमारे आगे रिरियाते हो।
मना करने पर
बाल्टी भर अपमान को
पी जाते हो।
नदी भर बेशर्मी दिखाते हो,
और बाहर निकलते ही
समन्दर भर ठहाके लगाते हो।
श्रीमानजी ने संदेश
कर दिया सैंड,
फिर साथी अध्यापक से बोले—
फ्रैंड!
ये चुल्लू वाला तो ख़ैर
हमें उल्लू बनाता है,
लेकिन विषाद उसका होता है
जो अवसाद में प्राण गंवाता है।
माता-पिता करते हैं
ज़रूरत से ज़्यादा उम्मीद,
बच्चा हो जाता है व्यर्थ में शहीद।
ऐसा तो हरगिज़ हरगिज़ न हो,
फ्रैंड, अब तुम भी तो कुछ कहो!