बिन अदब के बिना मुलाहिजा
(जब तबाही गुमसुम हो जाए तो सच्चाई बोलनी चाहिए, भले ही सख़्त मनाही हो।)
बम बबम्बम्ब बम लहरी,
गल्लां हैं गहरी-गहरी।
शहरी हैं सारे गूंगे,
बहरी हो गई कचहरी। ज़िन्दाबाद!
कोरट में चले गवाही
गुमसुम हो गई तबाही।
सच्चाई कह मत देना
है इसकी सख़्त मनाही। ज़िन्दाबाद!
चलता है गोरखधंधा
क़ानून नहीं है अंधा
खुल्लमखुला है सब कुछ
पर दूर गले से फंदा। ज़िन्दाबाद!
सूरज है भ्रष्टाचारी
राहू-केतू से यारी
लाचारी दुनिया की है
फिर भी घूमे बेचारी। ज़िन्दाबाद!
धरती को तुमने देखा,
फिर आसमान को देखा,
ये दोनों मिले जहां पर,
है वही गरीबी रेखा। ज़िन्दाबाद!
तेरी तो हो गई छुट्टी,
घपलों की पी के घुट्टी,
मुट्ठी भर लोगों की बस,
लो गरम हो गई मुट्ठी। ज़िन्दाबाद!
चल यार अंधेरा बांटें
वोटर के तलुए चाटें
शम्शान के उद्घाटन पर
ताबूत का फीता काटें। ज़िन्दाबाद!
जन्नत का ले ले जायज़ा,
बिन अदब के बिना मुलाहिजा।
सत्ता है आनी जानी
तू तो मस्ती में गाए जा— ज़िन्दाबाद!