भूतपूर्वों का रुदन-संगीत
(परिवर्तन की अभूतपूर्व लहरों में चंद खिसियाए हुए अश्रु गिरे)
ममते!
तुम जीतीं हम हारे!!
ललिते!
तुम जीतीं हम हारे!!
बुद्धदेव, गुम सिट्टी-पिट्टी,
करुणानिधि की कुट गई मिट्टी।
बहते आंसू खारे!
चौंतिस साला वाम करिश्मा,
करुणानिधि का काला चश्मा,
दिन में देखें तारे!
शपथ ले रहीं दोनों नारी,
रुदन कर रहे हाहाकारी—
फूटे भाग हमारे!
बांग्ला दीदी, चेन्नई अम्मा,
सिद्ध कर चुकीं हमें निकम्मा।
ढूंढें कहां सहारे?
वक्त कटे अब तो कराह में,
कड़ी धूप से भरी राह में,
बिछा गईं अंगारे!
ध्वस्त हो गए सारे सपने,
ज़्यादा भरी फूँक से अपने,
फूट गए गुब्बारे!
तुमको भी दिखला दें रस्ता,
देखो, बंधवा देंगे बस्ता,
ये वोटर बजमारे!
ममते! तुम जीतीं हम हारे!!
ललिते! तुम जीतीं हम हारे!!
ममते! ललिते!!
अश्रु नहीं अब थमते!