कुछ तो लॉलीपॉप दो —चौं रे चम्पू! आज संसद में ग्यारै बजे बित्त-मंत्री हमाऔ चित्त तौ खराब नायं करिंगे? —मैं उस समय टी.वी. नहीं देख पाऊंगा। एक स्कूल में बच्चों के बीच बसंत-पंचमी मनाऊंगा और देखूंगा कि उनके चित्त में क्या चल रहा है? वसंत उनके अन्दर क्या हिलोर और उमंग … Continued
टिकली जिए बापू —चौं रे चम्पू! टिकली जिए बापू कौन ऐं? —चचा, ‘प’ पर बड़े ऊ की मात्रा नहीं, छोटे उ की है। बापू नहीं बापु। इसके अलावा एक ग़लती और की आपने। तीन शब्द नहीं हैं, एक ही शब्द है, ‘टिकलीजिएबापु’। ये दूसरी बात है कि ‘टिकलीजिएबापु’ की सतरंगी आभाएं … Continued
पूछो फलानों-ढिकानों से —चौं रे चंपू! मोबाइल में का देखि रह्यौ ऐ? —वाट्सऐप पर एक वीडियो दसवीं बार आया है, पहली बार देख रहा हूं। इसमें दिखाया है कि हमारे देश में प्राथमिक शिक्षा के अध्यापकों और प्रधानाचार्यों की ज्ञान-दशा क्या है! रिपोर्टर पूछता है अमुक प्रांत की राजधानी … Continued
घोड़े आगे जोते जाएं —चौं रे चंपू! कल्ल बिस्व हिंदी दिवस हतो, कछू बतायगौ? —विश्व हिंदी दिवस के पीछे मुझे सशक्त सकारात्मक चेतना से भरी हुई तरंगें उमंगों के साथ दिखाई देती हैं। सन पिचहत्तर में दस जनवरी को हमारे तत्कालीन उपराष्ट्रपति श्री बी.डी. जत्ती के नेतृत्व में नागपुर में प्रथम विश्व … Continued
भुरभुरी मिट्टी कठोर चट्टान —चौं रे चंपू! नयौ साल कैसै मनायौ? —एक जनवरी को दोपहर बाद अचानक आपकी बहूरानी में नई-सी लहर आई, ‘आज कोई फ़िल्म देखेंगे’। ‘बुकमाईशो’ ऐप ने बताया कि दिल्ली और एनसीआर के लगभग सारे सिनेमा हॉलों में सिर्फ़ एक फ़िल्म चल रही है, ‘दंगल’। आमिर ख़ान के बारे में … Continued
बाली में लाली पहले बीस साल निकल गए घरौंदा बनाने और बच्चों के लालन-पालन में। अगले बीस साल जीवन-मंच के संचालन में। चालीसवीं सालगिरह बच्चे मना रहे हैं बाली में। खुश है आपका चम्पू और प्रसन्नता है आपकी लाली में। प्यार आपस में बाँटा है। पूल में केक काटा है। बाक़ी बातें लौटने पर।
हंसना बड़ा काम जब जनता रोएगी तब क्या सिद्धू हंस पाएंगे? नकली ही सही, कुर्सी पर बैठकर उन्हें जनता के साथ रोना होगा। उन्हें रोता देख शायद मुझे सात्विक हंसी आ जाए और मेरे अदृश्य गुरु प्रसन्न हो जाएं।
दुम पे हथौड़ा यहां कल रात नींद नहीं आई चचा! जगती आंखों से सपने देख रहा था। झपकी लगती थी तो वही जाग्रत चिंताएं गतांक से आगे हो जाती थीं। वे चिंताएं सपने में निदान भी बता रही थीं।
माई भागो और नलवा माई भागो का संदेश है ‘लड़का-लड़की में समानता’ और हरीसिंह नलवा का ‘धार्मिक सहिष्णुता’। नलवा ने अनेक मस्जिदों, मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया था। दोनों ने अपने देश के कट्टपंथियों से मुकाबला किया और एक प्रगतिशील नज़रिया अपनाया था। ऑस्ट्रेलिया में अपनी नई पीढ़ियों को आकृष्ट करने के लिए धर्म की ऐसी व्याख्या यहां सफल सिद्ध हुई।
दूसरा विश्वयुद्ध रंगीन हिंसा ही हिंसा है। सैनिकों की कतार, नागरिकों का हाहाकार, हवाई हमले, युद्ध पोतों का डूबना, टैंकों का चलना, इमारतों का गिरना और लाशों के अम्बार। रात में देखता हूं और दिवास्वप्नों में युद्ध के दृश्य घूमते-मंडराते रहते हैं। फिर जब यहां की धूप में निकलता हूं, पार्कों में बच्चों को खेलते देखता हूं तो वे दृश्य गायब हो जाते हैं और मैं इतिहास से सबक लेकर आगे बढ़ते बच्चों को देखकर खुश हो जाता हूं।