और अख़बार का क्या है सर!
(बात अच्छी हुई पर संदर्भ अच्छा नहीं है माफ़ करिएगा)
अस्पताल का वार्डब्वाय प्रमोद,
आई.सी.यू. की केबिन में ले आया
मोबाइल कुर्सी वाला कमोड।
मुझे धीरे से पार्टीशन के पीछे बिठाया,
बिठाते ही पूछा— सर मोशन आया?
मैंने कहा— बिना अख़बार पढ़े नहीं आएगा।
वह बोला— इधर अख़बार कौन लाएगा!
पूरा प्रिकॉशन लेते हैं,
सीरियस मरीज़ों को न्यूज़पेपर नहीं देते हैं।
और अख़बार का क्या है सर,
डेली एक जैसा ख़बर!
बाबा रे बाबा!
मर्डर एक्सीडैण्ट ख़ूनख़राबा।
घोटाला, इलैक्शन, लाटरी, जुआ….
सर मोशन हुआ?
मैंने कहा—प्रयास जारी है।
—सर! आजकल हर तरफ़ मारामारी है
लूट-खसोट, बलात्कार की बीमारी है।
कहीं देखो तो प्रोग्रैस बड़ा फ़ास्ट है,
कहीं देखो तो भीड़ में बौम-ब्लास्ट है।
कितना ख़ून बेकसूरों का बहाया. . . .
सर, मोशन आया?
मैंने सहमति में सिर हिलाया।
उसे तसल्ली हुई,
हाथ धुलवाए, फिर कुल्ली हुई।
—अच्छा हुआ सर जो मोशन हो गया।
—हां! जैसे दिन ही रोशन हो गया।
—सर आप कहीं पढ़ाते है!
मैंने कहा— हां,
साथ में मोशन पिक्चर्स भी बनाते हैं।