अगर तीसरी कुर्सी होती
(लड़ाई कुर्सियों से भी हो तो कुर्सियों के लिए होती है)
—मैंने सुना कि
पहले तो दोनों ने
एक दूसरे के लिए अपशब्द झाड़े,
पशुओं की तरह दहाड़े,
फिर एक दूसरे के कपड़े फाड़े!
—जी हां!
जमकर हुई लड़ाई,
कुर्ते फाड़ने के बाद जब
आ गई थोड़ी और गरमाई,
तो वे करने लगे हाथापाई।
आगा-पीछा बिलकुल नहीं सोचा,
एक ने दूसरे को नोंचा,
तो दूसरे ने नाखूनों से खरोंचा।
फिर उन्होंने उठाई
एक एक कुर्सी,
चेतना हो गई असुर सी,
कुर्सियों से हुई
घमासान मिजाजपुर्सी!
—जब तुमने देखा
उनका ऐसा बरताव,
तो क्यों नहीं किया
बीचबचाव?
—क्योंकि वहां
तीसरी कुर्सी नहीं थी जनाब!
बात समझ में आई?
हमारे यहां
कुर्सियों से नहीं
कुर्सियों के लिए होती है लड़ाई।
जो एक बार
कुर्सी पा जाता है,
बड़ी जल्दी ताव खा जाता है,
बड़ी जल्दी गरमा जाता है,
कुर्सी से
अलग नहीं हो पाता
उसी में समा जाता है।