अगर अपनी क्षमता का अनुमान है
(प्रकृति ने विषम स्थितियों का सामना करने की क्षमता सबको दी है।)
सावन का महीना
पवन सोर नहीं शोर कर रही थी,
पेड़ की नन्हीं-नन्हीं टहनियों पर
नन्हे परिन्दों को विभोर कर रही थी।
चिड़िया चहक रही थीं फुदक रही थीं,
इधर से उधर कुदक रही थीं।
अचानक तेज़ हो गई हवा
तो टहनी-टहनी कांपी,
लेकिन परिन्दों में नहीं हुई
कोई आपाधापी।
माना कि फुदकना बंद हो गया,
कुदकना थोड़ा मंद हो गया,
लेकिन बैठी-बैठी गाती रहीं
उन्हीं नन्हीं शाखाओं पर,
उनके मन में कोई क्रोध नहीं था
आंधियों के आक़ाओं पर।
इन्हें खिड़की से देख रहा था एक बच्चा,
मुझसे कहने लगा— चच्चा!
इतनी तेज़ हवा में भी ये
नहीं हैं भयभीत,
गाए जा रही हैं सावन के गीत।
इन्हें नहीं लगता है डर,
कि कोई टहनी टूट जाए अगर,
तो नीचे गिर जाएंगी,
मुसीबतों से घिर जाएंगी!
विषम स्थिति में भी गा रही हैं,
मोटी डाली पर क्यों नहीं जा रही हैं?
मैंने कहा— बेटा!
एक चीज़ है इनके पास,
वो है डालियों से ज़्यादा
अपने पंखों पर विश्वास।
अगर अपनी क्षमता का
तुमको अनुमान है,
तो कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता
कि सामने आंधी है या तूफ़ान है।