आती है तो धुंआधार आती है
(हंसी किसी के रोके नहीं रुक पाती)
हंसी जब आती है
तो धुंआधार आती है
किसी के रोके नहीं रुक पाती है।
गाल गुलेल हो जाते हैं,
सारे ब्रेक फ़ेल हो जाते हैं।
ये हंसी
अपना शिकंजा
कुछ इस तरह कसती है,
कि मुंह-दांत भींच लो
तो तोंद हंसती है।
देखा है कभी
किसी तोंद का हंसना?
फ़ैट्स के दरिया में
जैसे कैट्स का उछलना!
दोस्तो, दरअसल…
ये हंसी बहुआयामी है,
जिगर, फेंफड़े, आंत,
यकृत, तिल्ली…
गुर्दे, पसली,
पेट की झिल्ली,
इन सबके लिए व्यायामी है।
जो अट्ठहास करते हैं
उनके तो हाथ-पैर,
पेट… पाचन-तंत्र
सबकी मशक्क़त हो जाती है,
जो मनहूस हैं
उन्हें कब्ज़ की
दिक्क़़त हो जाती है।
पर सवाल तो यही है
कि कम्बख़्त
आती है तो आती है
नहीं आती है
तो नहीं आती है।