आज पर गाज कल का किसे लिहाज
(टुकड़ों टुकड़ों में विचार आते-जाते और मंडराते रहते हैं।)
कांटे भी थे फूल से,
था वो मेरा गांव।
तलवे जख्मी हो गए,
रख फूलों पर पांव।
जीवन कितना ठोस है,
एकत्रित कर ओस,
पानी पीकर कोस मत,
पानी देकर पोस।
तुम मुझसे नाराज़ थे,
तो दिखते नाराज़।
मुस्कानों में क्यों भला,
छुपा रहे थे राज़?
लाज पड़ी पैरों तले,
सर के ऊपर बाज,
गाज गिरी है आज पर,
कल का किसे लिहाज।
किस-किस के शव ले गया,
निगम बोध के घाट,
बोध नहीं फिर भी हुआ,
सब केशव के ठाट।
एक क़दम टेढ़ा पड़े,
आ जाता भूचाल,
अरी जवानी बावली,
सीधी कर ले चाल।
सुख ने मारा सभी को,
दुख देकर हर बार,
दुख से कभी न हारना,
वह सुख का आधार।
गोदी में आकर गिरा,
नन्हा सूखा पात,
पुनः हरा कर दे इसे,
है किसकी औकात।