आगे का कल देख
(दुख रुलाता है तो हंसा भी सकता है)
हिलता परदा देख कर
करवाई जब शोध,
मिला-विला कुछ भी नहीं
हुआ हवा का बोध।
कठिन दौर में याद रख
दो हैं बड़े निदान,
चुप्पी थोड़े वक़्त की
अधरों पर मुस्कान।
अरे कलंकी चन्द्रमा
घट-बढ़ पर कर ग़ौर,
अभी अभी कुछ और है
कल होगा कुछ और।
ओ ज़ख़्मी इस बात का
बोध न तुझको होय,
जो मरहम तू चाहता,
बना न पाया कोय।
मिले मिले या ना मिले
क्यों हो रहा उदास,
जो जितना ही दूर है,
वो उतना ही पास।
आपस के विश्वास का
मुख्य समझ ले तत्व,
यह पक्का बंधत्व है
जहां नहीं अंधत्व।
दुख ही हमें रुला रहा
दुख ही हमें हंसाय,
दिल-दिमाग़ तो जानते
अधर न जानें हाय।
कल न पड़े, बेकल रहे,
मुख पर चिंता रेख।
बीते कल से सीख ले,
आगे का कल देख।