—चौं रे चम्पू! तनाव अपने कारन हौंय कै दूसरेन के कारन?
—तनाव अपने जैसे लगने वाले दूसरे के कारण ज़्यादा होते हैं। वह ’अपना’ लगने वाला व्यक्ति तनाव का नन्हा सा बीज जाने-अनजाने डाल देता है। और चचा! तनाव का वृक्ष बनने की गति सबसे तीव्र होती है। देखा जाय तो अपनी धरती ही दोषी है जो उस नन्हे से बीज को वृक्ष बनने देती है। अगर धरती ये समझ जाए कि बीज में गड़बड़ी है, इससे कांटेदार बबूल या कैक्टस ही पैदा होना है तो अपनी आंतरिक खनिज शक्तियों, आंतरिक लौह-अयस्कों, और वयस्क चिंतन से उस बीज को वहीं नष्ट कर सकती है। छोटे से तनाव की परछांई बहुत लम्बी हो सकती है, चचा! जिस तरफ थोड़ा सा तनाव है, अगर उस तरफ रौशनी न डाली जाए, तो परछांई होगी ही नहीं। इसका मतलब यह हुआ कि तनाव पर निरर्थक रौशनी डालते रहने के कारण ही तनाव ज़्यादा बढ़ता है।
—जे बात तौ तैनैं भौत अच्छी कही लल्ला!
—हां चचा, तनाव चिंता का पिता है। आप जानते हैं, पुत्रियां जल्दी बड़ी होती हैं। ये चिंता और भी जल्दी बड़ी होती है। इस बात को सब जनते हैं कि चिंता भी जलाती है और चिता भी जलाती है। मेरे नाना जी कहा करते थे कि चिंता जीवित आदमी को जलाती है, चिता मरे हुए को। चिंता को चिता के समान बताया भी जाता रहा है। ये चिंता बढ़ती है सोचने से। योगवासिष्ठ में कहा गया है कि ईंधन से जैसे अग्नि बढ़ती है, ऐसे ही सोचने से चिंता बढ़ती है। न सोचने से चिंता वैसे ही नष्ट हो जाती है, जैसे ईंधन के बिना अग्नि।
—उदाहरन दै कै समझा लल्ला!
—अब उदाहरण क्या दूं चचा? अकारण भी उदाहरण बन जाते हैं। कोई आदमी प्रतिदिन आपको गुड मॉर्निंग बोले। एक दिन जानबूझ कर न बोला या अनजाने में भूल गया, बस उसकी परछांई लम्बी होनी शुरू हो जाएगी। हज़ार प्रकार के विचार आएंगे। इसमें अहंकार आ गया है। इसमें मेरे प्रति सम्मान भाव कम हो रहा है। फिर चिंता के साथ चिंता का भाई अहंकार जन्म लेता है। तनाव चिंता और अहंकार दोनों का पिता है। अहंकार आते ही संवादहीनता शुरू हो जाती है। संवादहीनता तनाव की चचेरी बहन है। तनाव इनके सहयोग से अपना क़द बढ़ाता जाता है और आलम्बन को फिरकनी बना देते हैं। अब दूसरा उदाहरण लो, मान लो कोई अपरिचित आपको अचानक नमस्कार करके चला जाए तो हो जाएगी चिंता की लकीर लम्बी। कौन था? क्यों नमस्कार किया? मुझसे क्या सरोकार? ज़रूर कोई गड़बड़ है।
—चिंता दो लोगन्नैं नायं सताय, एक तौ छोटौ सौ बालक दूसरौ पहंचौ भयौ संत।
—हां चचा! बच्चा अज्ञानी होता है और संत ध्यानी। बच्चा सोचता नहीं और संत सोचता है कि ऐसे दुख तो बहुतेरों को हैं। मुझे स्वयं देखना चाहिए कि मैं कितना सही हूं। चिंता और अहंकार को मारने से तनाव का क़द कम होता है। चिंताएं निढाल और निष्क्रिय कर देती हैं। हर कोई अपने अनुभव से इस बात को जान सकता है कि वह आठ घंटे काम करके उतनी थकान महसूस नहीं करेगा, जितना आठ मिनिट का क्रोध उसको थका देगा। क्रोध चिंता का मामा है। कुटिल कंस है, विध्वंस कर देता है। यानी, तनाव अपने कारण ज़्यादा होते हैं, दूसरों के कारण कम। और वे लोग, जो तनाव का कारण बनते हैं, उनको जवाब में मुस्कान देते रहो, इससे बढ़िया कोई उपाय नहीं है। वह मुस्कान व्यंग्यमयी भी हो सकती है, रंगमयी और आंतरिक तरंगमयी भी, जो आपकी ओर से बता देगी कि मैं तुझे माफ करना और तेरे दुर्गुणों को अनदेखा करना जानता हूं। मैं तेरे व्यक्तित्व के इस नकारात्मक अंश की छवि को हटा लेता हूं। तेरे अन्दर जो अच्छा-अच्छा है, उसी का गुणग्राहक हूं मैं। तूने नमस्कार किया तो अच्छा, नहीं किया तो और भी अच्छा।