—चौं रे चम्पू! कछू सवाल पूछूं जवाब देगौ?
—क्यों नहीं चचा, लेकिन बलवीर सिंह ‘रंग’ ने कहा था— ‘बहुत से प्रश्न ऐसे हैं जो सुलझाए नहीं जाते, मगर उत्तर भी ऐसे हैं जो बतलाए नहीं जाते।’
—रंग जी की बात छोड़। अपनी रंगदारी मत दिखा। हां और ना में बात कर। जवाब देगौ कि नायं देगौ? बुनियादी सवाल पूछने ऐं कछू? जे बता कै चिकित्सक कौन ऐ?
—चिकित्सक होता है यमराज का भाई। यमराज तो सिर्फ प्राण लेता है। चिकित्सक प्राण के साथ पैसा भी खींच लेता है। कहावत है कि जो सौ को मारे सो वैद्य, हजार को मार दे सो चिकित्सक। चचा, आधा चिकित्सक तो रोगी स्वयं ही होता है, क्योंकि अपने और अपने रोग के बारे में जानता है। फिर भी चचा जो सही इलाज करे वो है भगवान जैसा। जिसकी नज़र में न हो पैसा। इलाज के लिए तरह-तरह की पैथियां हैं। आयुर्वेदिक, यूनानी, एलोपैथी, होम्योपैथी। होम्योपैथी में हजार सवाल पूछे जाते हैं तब एक दवाई निकाली जाती है। अंधेरे का तीर है, लेकिन अगर चलाने वाला पृथ्वीराज चौहान हो तो आंखों पर पट्टी बांधने के बावजूद भी निशाना ठीक लगेगा, लेकिन चिकित्सक वही ठीक है जो पट्टी तब बांधे जब घाव हो। ऐसा न हो कि पट्टी के पैसे लेने के चक्कर में घाव कर दे।
—जे बता इंजीनियर कौन ऐ?
—इंजीनियर वह जो मनुष्य की ज़रूरतों के हिसाब से सुविधाएं खड़ी करने में महारत रखता हो। पुल बनाए, मकान बनाए, बिजली लाए, सुख-सुविधाएं जुटाने में अपने वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकी के कौशल को लगाए।
—और ठेकेदार कौन?
—ठेकेदार वह प्रजाति है जो इंसान और इंजीनियर के बीच में लाभ कमाने के लिए आती है। उनके बिना काम नहीं चल पाता। ठेकेदार हजार प्रकार के होते हैं, कहां तक गिनाएं?
—वकील कौन?
—वकील, वह कील जो ठुक जाए तो निकले नहीं। इसीलिए मुक़दमे को ठोकना कहते हैं। सही हो तो, वकील सारे कील-कांटे दुरुस्त कर सकता है।
—अध्यापक कौन?
—जो अपने अनुभव, अपने अध्ययन और अपने विवेक को अपने छात्रों में स्थानांतरित कर दे। ज्ञान की कोई सीमा नहीं है चचा। कोई कितना भी अर्जित कर ले, फिर भी कम।
—बुझी-बुझी सी बात कर रयौ ऐ लल्ला! चल छोड़ जे बता कै साहित्यकार कौन ऐ?
—अब तुमने ऐसा सवाल पूछा है जिसका जवाब देना वाकई मुश्किल है। साहित्यकार वह जो अपने आपको माने कि वह साहित्यकार है। चन्द समीक्षक जिसको मान लें कि वह साहित्यकार है। साहित्यकार मानने या न मानने में यह नहीं देखा जाता कि उसने किसी समाज का इलाज किया या उसने कोई साहित्यिक इंजीनियरिंग का कौशल दिखाया या उसने कोई ठेकेदारी करके इंसान को बेहतर बनाने में भूमिका अदा की या इंसानियत की वकालत की। ये सब साहित्यकार होने का कोई पैमाना नहीं हैं। अच्छा डॉक्टर, अच्छा इंजीनियर, अच्छा वकील सबके पैमाने हो सकते हैं, ग्रेड हो सकते हैं, लेकिन साहित्यकार का ग्रेड बनाना बड़ा मुश्किल है। आकाशवाणी, दूरदर्शन सरकारी संस्थाएं हैं, वहां भी यह समस्या है। अभिनेता और संगीतकार के ग्रेड होते हैं, ए ग्रेड, बी ग्रेड। उसी के हिसाब से उनकी फीस निर्धारित होती है, लेकिन साहित्यकारों का, कवियों का कोई ग्रेड नहीं है। सबके लिए वही पांच सौ रुपए। अगर वह टैक्सी से आए तो भी पूरा न पड़े। बड़े-छोटे का कोई मानक नहीं है। सही सुर मिलाओगे, दिलकश गाओगे तो ए ग्रेड मिलेगा। अभिनय में उतार-चढ़ाव दिखाओगे तब ए ग्रेड मिलेगा। यहां क्या मिलाएगा भाई। अगर तुक मिला दी तो तथाकथित महान साहित्यकारों की नज़र में साहित्यकार कहां रहा? छंद बना दिया तो छल-छंदी मानेंगे तुझे। अगर छंद न बनाया, तुक नहीं मिलाई तो जनता तुझे साहित्यकार नहीं मानेगी। समीक्षक एकजुट हो जाएं तो किसी को भी महान बना दें। कुपित हो जाएं तो किसी को भी गिरा दें। साहित्यकार कौन है, मैं बता भी दूं तो महायान में हीनयान को मानेगा कौन? इसलिए बेहतर है मौन।
—चल छोड़। हम तोय ज्ञान की बात बतामैं। तोय मालूम ऐ कै चिकित्सक कूं संस्कृत में कविराज कह्यौ करैं। तौ हे कविराज! तू तौ समाज की चिकित्सा कर। ठेकेदारी, इंजीनियरिंग, वकालत, अध्यापकी के जरिए जो मनुष्य के तन मन कूं ठीक करै सो कविराज। जाकूं मानै सकल समाज। बाकी सब कोढ़ में खाज।