ऑडियो फाइल नं. 1
— काजू ताजा नारियल भीगे हुए बादाम, उम्र बढ़ाने के लिए आते हैं ये काम। आते हैं ये काम अगर हो जाए हिंसा, नहीं बचेगा शेष उम्र का कोई हिस्सा। उमरनीति में सुनो उमरवाणी का बूता, पत्थर से बेहतर है कांस्टेबल का जूता।
ऑडियो फाइल नं. 2
—चौंरे चम्पू! कश्मीर में फिर एक जूता काण्ड ह्ग्यौ, पिछले जूता काण्ड और जै जूता काण्डन में का फरक है?
—चचा पहले जितने भी जूताशस्त्र फेंके गए, देश में या विदेश में, वो पत्रकार प्रजाति द्वारा फेंके गए और उनका विषय था विश्व का अथवा देश का अथवा राज्य का ध्यानाकर्षण। लेकिन इस बार जो जूता फेंका गया है, वह किसी पत्रकार का ध्यानाकर्षण प्रस्ताव नहीं है। यह एक कांस्टेबल का ताव है, क्रोध है, गुस्सा है। उसे निलंबित किया गया था। उसके बाद कहा जा रहा है कि वह पागल है।
—अरे, नाय, पागल नाय, पागल आदमी ऐसा नाय करैं। दिमाग में जब कोई चीज ठुक जाय तभी लोग याय करै, वाय लोगन पागल कह करार दैं।
—चचा, पागल कहने में तो शासन की इज्जत बचती है ना। पागल था उसने फेंक दिया। चलो मान लो कि पागल था और उसने जूता फेंका। अब अन्दर की कहानी जानने के लिए मुझे जाना पड़ेगा कश्मीर और कश्मीर जाना हालांकि रिस्की नहीं है। लेकिन हमारे पचपन जवान अभी-अभी मारे गए हैं। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में उनको संवेदना भी ज्ञापित की है।मैं छप्पनवां न हो जाऊं चचा!
—अरे, हट पगले बता चौं जाएगो कश्मीर?
—यही पता लगाने कि वो पागल है या दीमागदार है।
—बा तै फरक का पड़ै?
—तुम्हीं भेज रहे हो चचा। फर्क ये पड़ता है कि उसको पागल कहने में शासन-प्रशासन को सुविधा होती है और अपमान की मात्रा कम होती है और जूता एक निराकार शक्ति बनकर रह जाता है, जबकि साकार अपमान प्रदाता। चलिए वो पागल भी था, लेकिन निलंबित था, यह तो एक सच्चाई है। निलंबित क्यों था? इसकी जांच होनी चाहिए। लेकिन इससे पहले इस बात की जांच होनी चाहिए कि उमर अब्दुल्ला ने जिस शेखी के साथ ये बघार दिया कि पथराव से ज्यादा अच्छा है जूता फेंकना। उसी अब्दुल्ला के इशारे पर पन्द्रह लोग निलंबित कर दिए गए जिनमें तीन बड़े पुलिस अधिकारी भी शामिल हैं। अब अताइए उनका क्या कुसूर! कौन आदमी किसी राजनेता का निमंत्रण पत्र लेकर दर्शक दीर्घा में घुस आया। तो उन पन्द्रह लोगों का क्या कुसूर जो उसको पागल अथवा सूजते आदमी का प्रवेश देख न पाए। अब उमर अब्दुल्ला ने एक साथ पन्द्रह लोगों को पागल कर दिए जाने का मौका दे दिया। ये पन्द्रह जो अकारण निलंबित हुए होंगे, इनमें से देखना पन्द्रह के कितने गुना पागल होते हैं। ये पागल, इनकी बीवियां पागल, इनके बच्चे पागल, इनके दोस्त पागल। पन्द्रह के बजाय पन्द्रह सौ पागल हो जाएंगे। असल चीज है न्याय का मिलना। न्याय अगर न मिले तो पागलपन बढ़ता है चचा। निश्चित रूप से उस जूता मारू कांस्टेबल के साथ कोई अन्याय हुआ होगा। उमर की उम्र नीति तो सुन लो। सुन लो मेरी एक कुण्डली।
—सुना, सुना, तू ही सुना दै।
ऑडियो फाइल नं. 3
— काजू ताजा नारियल भीगे हुए बादाम, उम्र बढ़ाने के लिए आते हैं ये काम। आते हैं ये काम अगर हो जाए हिंसा, साबुत नहीं बचेगा शेष उम्र का कोई हिस्सा। उमरनीति में सुनो उमरवाणी का बूता, पत्थर से अच्छा है कांस्टेबल का जूता।