लेखक जीवित रहता है मरने के बाद भी
(याद रखें कि उम्र कई तरह की होती है)
ये तो ग़नीमत कि महीना अक्तूबर था,
न धरती गरम थी न ठंडा अम्बर था।
निगम बोध घाट पर
शब्द और अर्थ के धनी
एक लेखक की अर्थी को आना था,
लेखक जाना-पहचाना था।
भीड़ जुट गई भारी,
चल रही थी इंतजारी।
लोग एक घंटे से खडे़ थे,
लेखक चूंकि बहुत बडे़ थे
इसलिए प्रतीक्षा करना लाचारी थी,
हर चेहरे पर
एक मौन बेक़रारी थी।
हाथों में पुष्प-गुच्छ और हार सजे थे,
आना चार बजे था, साढे़ पांच बजे थे।
खुसुर-पुसुर और सुगबुगाहट थी,
अर्थी के आने का
न कोई संकेत न कोई आहट थी।
एक कवि का धैर्य डोला,
तो ज़रा ऊंचे स्वर में बोला–
कमाल है अर्थी अभी तक नहीं आई!
कमाल ये हुआ कि
तभी अर्थी आ गई,
मायूस चेहरों पर
सुकून की रौशनी छा गई।
प्रतीक्षा का बोझ उतरा सिर से,
कवि बोला फिर से–
देखा, नाम लेते ही आई है,
कित्ती लम्बी उमर पाई है!
दुख में भी लोग मुस्कुराए,
मेरे मन में विचार आए
बडा़ लेखक जीवित रहता है
मरने के बाद भी,
लोग उसे सदियों तक पढ़ते हैं
और करते हैं याद भी।