भीषण भिड़न्त हुई भयानक हड़बड़ी
(लोग नहीं जानते कि आजकल मुर्दा भी नाराज़ हो सकता है)
मोड़ के इधर से
श्रीमानजी की
दनदनाती हुई
साइकिल जा रही थी,
उधर से
‘राम नाम सत्य है’
एक अर्थी आ रही थी।
भीषण भिड़न्त हुई
भयानक हड़बड़ी,
अर्थी बेचारी नीचे गिर पड़ी।
—दिखाई नहीं देता
शंघाई के उल्लू की दुम,
साइकिल
कैसे चलाते हो तुम?
दूसरा अर्थी ढोऊ बोला—
वासेपुर के
बिना ब्रेक के
कमीने रामाधीर!
तीसरा बोला—
बहुत जल्दी में है अधीर!
चौथा बोला— अंधा… बद्तमीज़!
श्रीमानजी ने कहा—
एक्सक्यूज़ मी प्लीज़!
हे अर्थीवाहको!
आपने घेर लिया था
पूरी राह को!
अब क्यों अपने धीरज का
अंदाज़ खो रहे हैं?
जो गिर पड़ा
वह तो कुछ बोल नहीं रहा
आप लोग
ख़ामख़ां नाराज़ हो रहे हैं।